Friday, November 15, 2019

कलम


मैं लिखने को तैयार, पर कलम लिखना ना चाहे 
मैं सब कहने को तैयार, पर जुबां कहना ना चाहे 

जो बिखर गए सब जज़्बात, तो उसे समेटे कौन 
शायद इस डर का एहसास, इसलिए वाणी मौन

दिल में दफ्नी यादों से कहीं, कोई धूल हटा ना दे
झूठी चिंगारी से कोई, सच की चादर  जला ना दे

मैं झुकने को तैयार, पर खुद्दारी झुकना ना जाने
मैं मिटने को तैयार, पर हस्ती मिटना ना जाने

मैं सब कहने को तैयार, पर जुबां कहना ना चाहे
मैं लिखने को तैयार, पर कलम लिखना ना चाहे 

Thursday, November 14, 2019

बेस्ट फ्रेंड

चार पलों की ज़िंदगी में, दो पल तो जी जाएं l
चल यार मिल लें इक बार, फिर बिछड़ जाए ll

दुनिया के ताने बाने ,तो हम ताउम्र बुनेंगे l
नए नए सिपहसालार ,हर मोड़ पर चुनेंगे ll

भुलभुलैया जग में, कहीं ये यारी ना खो जाए l
चल यार मिल लें इक बार, फिर बिछड़ जाएं ll

 मैं भी नहीं हूं तन्हा, तुम भी मशरूफ बहुत हो l
मैं औरों में मशगूल, तुम अपने जहां में खुश हो ll

कहीं अनकही बातें, अब किससे समझे समझाएं  l
चल यार मिल ले एक बार, फिर बिछड़ जाएं ll

गुजरे पलों की बातें, क्या याद तुम्हे भी आती हैं l
रिमझिम बूंदे पानी की , क्या आंखों  में इठलाती हैं ll

यादों के पिटारे से, फिर वक़्त की धूल हटाए l
चल यार मिल लें इक बार, फिर बिछड़ जाए ll

चार पलों की ज़िंदगी में, दो पल तो जी जाएं l
चल यार मिल लें इक बार, फिर बिछड़ जाए ll



Thursday, August 29, 2019

पुराना दौर

ख़ुशियाँ मिला करती थी, जब ज़िन्दगी थी अभावों में
किसी के बाग़ बगीचों में,  किसी के सहज स्वभावों में
उस वक़्त लोगों के घर, बिना दावत के जाते थे
किसी भी ठौर पे, अपनेपन का अहसास पाते थे
दिल खुश हो जाता था, प्यार भरे निवाले को चखकर
चाय मीठी हो जाती थी, पड़ोस की चीनी से मिलकर
वो दौर ही था कुछ और , जहाँ हर ठौर अपना था
लोगों के घरों को छोड़ो,  दिलों पर भी हक़ अपना था 

Monday, August 26, 2019

तन्हाई

फिर से कलम उठाया मैंने, शायद, याद तुम्हारी आयी है 
सब कुछ पहले जैसा है,  अब बस थोड़ी तन्हाई है 

सुबह के शोर में शामिल सब, बस एक तेरी आवाज़ नहीं 
चाय की प्याली के चुस्की में, अब पहले जैसा स्वाद नहीं 

सारा जग है , अब पास मेरे , फिर भी कुछ खोया लगता है 
मुस्काता चेहरा भी दर्पण में , अब कुछ रोया रोया लगता है 

अपने दिल की जागीर हार, वो तुम्हे जीतने आयी है  
सब कुछ पहले जैसा है,  अब बस  थोड़ी तन्हाई है 

Thursday, August 22, 2019

इश्क़

मैं मर्ज हूं मुझको, तुम दुआ  ना समझो l
नाम इश्क़ है मेरा, तुम ख़ुदा ना समझो ll
जी लो आज का  ये पल, कल का किसको पता l
अक्सर  दिल के अज़ीज़ भी, हो जाते हैं  लापता ll
हो जाते है अलग वो भी, जो साथ  चलना चाहे l
गिरते है इसमें वो ही, जो इश्क़ से बचना चाहे ll
ये ज़रूरी नहीं कि, इश्क़ में टूट जाते हैं सभी l
कुछ साहिल पर आकर, भी डूब जाते हैं कभी ll
पर इल्म- ए - इश्क़, होता नहीं मयस्सर सबको l
खड़ा कर देता है दो -राहे पर, ये अक्सर सबको ll
एहसास हूं मै, इसे  दर्दे - बयां ना  समझो l
नाम इश्क़ है मेरा, तुम खुदा ना समझो ll


Wednesday, August 21, 2019

आज का भारत

अर्थव्यवस्था मुल्क की, इस क़दर जार जार !
जहाँ कार भी बेकार और कपड़ा तार तार !!
जी एस टी के मार से, हुआ पारले  बेस्वाद !
व्यापार में सिर्फ, रिलायंस की शंखनाद!!
बैंक भी बन बैठा, है आज कर्ज़दार !
शिक्षा सम्पन्न भी, हो रहे बेरोजगार !!
हवा हवाई हो रहा,  हवा में सफर !
देश में भी फ़ैल रहा, लिंचिंग का जहर !!
मैदां-पहाड़ हुए, प्रकृति से पस्त !
खेत खलिहान भी, सूखे से त्रस्त !!
पड़ोसी भी अपना, मचा रहा हाहाकार !
कमज़ोर विपक्ष भी, भर रहा हुंकार !!
कश्मीर नज़रबंद,  वहां अब भी तकरार !
घाटी में घूम रही, ब्रितानिया सरकार !!
प्रदूषण और जनसंख्या का, भी नहीं समाधान !
सोच रही सरकार, कैसे संभले हिन्दुस्तान !!

#economicCrisis #textile #auto 
#aviation #banking #monopoly #lynching 

चांद से सुलह

सोचा चांद से आज, मैं सुलह कर लूं
चाय पे बुला कर कुछ, जिरह कर लूं  !

आखिर कब तक करूं, नजरंदाज उसे
दिल कहता है फिर दे दूं ,  आवाज़ उसे !

क्या हुआ जो उसके, नखरों से परेशान हूं 
आखिर फितरत से मैं भी,  एक इंसान हूं  !

साथ उसके मैं, आस्मा का सफर कर लूं
सोचा चांद से आज, मैं सुलह कर लूं !

मुझे लगा कि चांद से सुलह हो गई
पर जाते जाते फिर से कलह हो गई !

कल था पूरा चांद, आज आधा हुआ 
उसका  नखरा भी पहले से ज़्यादा हुआ !

सितारों के संग भी, वो गैरों सा रहा
चांदनी रात में भी , सबसे  छुपता रहा !

उसे छोड़ दूं, या  एक और पहल कर लूं
क्या चांद को बुला कर, मै  फ़िर से  सुलह कर लूं !

Sunday, June 2, 2019

रंग हरा क्या होता है

रंग हरा क्या होता है, चिड़िया ने पूछा  माली से
माँ कहती है, घर था अपना, हरे पेड़ के डाली पे

हरे पेड़ थे यहीं कहीं, बसा हुआ अब  यहाँ शहर
काट-छांट सब पेड़ो को, हमको कर घर से बेघर

कैसी होती थी नदियां, कैसे बहता था निर्मल पानी
कैसा था जंगल का राजा कैसी थी वन की रानी

कहाँ गए सब  वन-उपवन, कहाँ गए सब वन के वासी
क्यूँ... सूख गयी नदियां, क्यूँ.. धरती रह गयी प्यासी

कैसी होती  बारिश की बूंदे, कितनी शीतल तरूवर छाया
मृगतृष्णा के मोह में फंसकर, क्यों मानव इतना भरमाया

सूखे का सृजन हुआ कैसे, मन क्यों उकताया हरियाली से
रंग हरा क्या होता है, चिड़िया ने पूछा  माली से

Thursday, May 30, 2019

कहाँ

कहाँ सभी लिखने वाले, भरते, कोरे-कागज़ का खालीपन 
कहाँ सभी की जिरह लगाती, मन की पीड़ा, पर मलहम 

कहाँ उजाले से दिनकर के, मन का अँधियारा छटता है 
कहाँ बिना प्रेम भाव के, बैर...., ह्रदय से मिटता है 

कहाँ समंदर का खारा पानी, प्यासे की प्यास बुझाता है 
कहाँ हिमालय का हर पौधा,  मूर्छित में चेतना लाता है 

कहाँ हर अंगूर से बनती, मधु मदिरा, मादक हाला 
कहा खरे सोने से बनती, कंठ हार और गल-माला 

कहाँ किताबें सुलझा पाती, जिज्ञासु के मन की उलझन 
कहाँ हर शिखर पुरुष ला पाता, परम्परा में परिवर्तन  

नयी इबारत लिखने वाले दुनिया में, कभी कभी ही आते हैं 
जैसे काँटों के जंगल में रह कर सिर्फ गुलाब मुस्कुराते हैं 

Friday, April 26, 2019

सियासत

सियासत का सागर, समन्दर से भी खारा है
जहाँ सत्ता ही मोती है और संसद सहारा है | 

अक्ल के छन्नी लगा सुनना,  सियासतदान  की बातें 
 भला सियासत का पानी, कहाँ किसी की प्यास बुझाते | 

उम्मीद की  मथनी से मथना, सियासत के समंदर को 
अमृत मिल ही जायेगा, चाहे बिष जितना अंदर हो  | 


Thursday, March 28, 2019

लखनऊ

मन को मेरे कुछ ऐसा भाता है लखनऊ
रह रह कर बहुत याद आता है लखनऊ

अमीनाबाद की गलिया, या  चौक के चौबारे
 गड़बड़झाला का बाजार, जैसे सब  मुझे पुकारे

निहारी, टुंडे कबाबी, या दस्तरख़्वान  की बिरयानी,
बस सोचते ही मुँह में बरबस आ जाता  पानी

 प्रकाश की कुल्फी, या शुक्ला  जी की  चाट
चौक की मक्ख़न- मलाई, वो खाने पीने के ठाट

रंंगीले गंज के गलियारे, कॉफ़ी हाउस की कॉफ़ी
गोमती  मरीन ड्राइव और आंबेडकर पार्क के हाथी

नक्खास  की नक्काशी या चौक की चिकनकारी
कपड़ो के मान बढाती, हुनरवालों की कारीगरी

ऐतहासिक भूलभुलैय्या, या छोटा इमामबाड़ा
हर नुक्कड़ पर दिख जाता है, जहाँ नवाबी नज़ारा

तहज़ीब के इत्र से महकता है  लखनऊ
मैं कहीं भी रहूं, दिल में धड़कता है लखनऊ







जब से गए हैं, परदेस पिया जी

पतझड़ बीता, सावन बीता
ना आया कोई, सन्देश पिया जी
पल-पल बीते ,   बरस के जैसे
जब से गए हैं, परदेस  पिया जी

रंगो के बिन, होली बीती
दिया बिना ही, सजी  दिवाली
पूनम की रात, भी ऐसे बीती
जैसे रात, घनेरी काली-काली

साज-श्रृंगार से, मोह भंग अब
फैले काजल, केश पिया जी
पल-पल बीते , बरस के जैसे
जब से गए हैं, परदेस पिया जी

सावन भादो, बरस के बीता
जल-तप कर ,  बीता बैशाख
घर की रेज़कारी छोड़ पिया जी
गए कमाने रुपये लाख

व्याकुल मन, चंचल चितवन
है बाट देखते रोज़ पिया जी
पल-पल बीते, बरस के जैसे
जब से गए हैं परदेस  पिया जी








Friday, March 15, 2019

नज़र नहीं, नज़रिये का सवाल है


कोई तन देखे, कोई कपड़ा
कोई मन देखे, कोई मुखड़ा
मिनीस्कर्ट-हाई हील  से, मचा हुआ बवाल है
ज़नाब ! ये नज़र नहीं, नज़रिये का सवाल है ||

कोई ख़्वाब देखे, कोई हक़ीक़त
कोई भाव देखे, कोई क़ीमत
सम्बंधों के मायाजाल से, मचा हुआ बवाल है
ज़नाब ! ये नज़र नहीं, नज़रिये का सवाल है ||

कोई इन्सां देखे, कोई जाती
कोई हुनर देखे, कोई ख्याति
जाति-धर्म के जंजाल से, मचा हुआ बवाल है
ज़नाब ! ये नज़र नहीं, नज़रिये का सवाल है ||

कोई पथ देखे, कोई मंजिल
कोई गहरायी देखे, कोई साहिल
ज़िंदगी की उठा-पटक से, मचा हुआ बवाल है
ज़नाब ! ये नज़र नहीं, नज़रिये का सवाल है ||



तुम तो मेरे दिल में हो

मैं रहूँ.. ना रहूँ
मैं कहूँ..  ना कहूँ
तुम हो मेरे, मैं हूँ तेरी, फिर
किस ओर मैं, किस छोर तुम
तुम तो मेरे दिल में हो
मेरी  हर महफ़िल में हो

चाँद की चांदनी हो
जुगनुओं की रौशनी हो
नैनो की मेरे भाषा  हो और
साँसों की परिभाषा  तुम
तुम तो मेरे दिल में हो
मेरी   हर महफ़िल में हो

मेरी चाहतों का परवाज़ हो
मैं गीत और तुम साज हो
हंसी सुबह का ख्वाब और
मेरे लफ़्ज़ों का संवाद तुम
तुम तो मेरे दिल में हो
मेरी हर महफ़िल में हो

मेरे जज़्बातों का एहसास हो
मेरी धड़कने, मेरी सांस हो
मेरी धरती और अम्बर भी हो,
मेरा कल भी थे, मेरा आज तुम
तुम तो मेरे दिल में हो
मेरी हर महफ़िल में हो






सोशल मीडिया के वीर

सोशल मीडिया के वीरों को भी, सीमा पर भेजो मोदी जी
वीरगति की इनकी इच्छा भी, अब पूरी कर दो मोदी जी |

कुछ न इनसे हो पाया, तो भी. दुश्मन की गोली कम होगी
सिर्फ युद्ध ही है विकल्प, ये बड़बोली भी कुछ कम  होगी |

गोली-बारूद कहाँ देखे,है किसका सीना किसका सर
युद्ध भयावह होता है, उससे भी भयंकर रण का मंजर |

है शहादत की कीमत क्या, इनको बतला दो मोदी जी
सोशल मीडिया के वीरों को, सीमा पर भेजो मोदी जी |

हमको जब से इश्क़ हुआ है

हमको जब से इश्क़ हुआ है, खामोश  लब भी कुछ कहने लगे हैं
धड़कनो की भी है रफ़्तार बदली, भीड़ में हम अकेले रहने लगे हैं
बेवज़ह ही मुस्कुराना, ऐसी तो थी कोई आदत नहीं
बातो बातों में खो जाना, ऐसी भी कोई फितरत नहीं
दिल संभाले भी न संभले,  ख्याल-ए -आशिकी में हम बहने लगे हैं
हमको जब से इश्क़ हुआ है, खामोश  लब भी कुछ कहने लगे हैं
चाँद पहले भी था निकलता, पर देखने की थी फुर्सत नहीं
चांदनी आकर जगाये, थी ऐसी भी कोई हसरत नहीं
वक़्त गुजारे नहीं गुजरता, जब से इंतज़ार तुम्हारा हम करने लगे हैं
हमको जब से इश्क़ हुआ है, खामोश लब भी कुछ कहने लगे हैं
मज़मा-ए-आम देखे बहुत, पर तसव्वुर में था कोई चेहरा नहीं
ख्याल-ए -आशिकी में हम बहकने लगे है
तुम तसव्वुर हो या हक़ीक़त, हम तो तस्वीर पर ही मिटने लगे है 

सैनिक का पत्र

बोलो प्रिये क्या दूँ तुम्हे, कुछ भी नहीं मेरे  पास है 
पर साथ मेरे हो तुम सदा, इस बात का एह्सास  है 

ये जो तन है मेरा, मन है मेरा, वो भी वतन के नाम है 
नींद मेरी, सांसे मेरी, सब देश पर कुर्बान है 

रह सकता नहीं तुम्हारे पास भी, मेरा काम ऐसा खास है 
बोलो प्रिये क्या दूँ तुम्हे, कुछ भी नहीं मेरे पास है 

देश मेरा सो सके, इसलिए जागता हूँ रात भर 
फिर मिलूंगा तुमसे मैं, है इस बात की उम्मीद पर 

मेरे हौसले और जूनून ही, मेरे देश का विश्वास है 
बोलो प्रिये क्या दूँ तुम्हे, कुछ भी नहीं मेरे पास है 

मेरे जीवन रथ का, तुम हो एकमात्र सारथी 
पर देश के रणक्षेत्र में, मैं देश का महारथी 

फ़ना तिरंगे पर मोहब्बत, जब तक चल रही ये सांस है 
बोलो प्रिये क्या दूँ तुम्हे, कुछ भी नहीं मेरे पास है 

मतदान करें

ना राम रहे, ना रहमान रहे
ना गीता रहे, ना क़ुरान रहे
जमकर करना, मतदान मगर
तब दिल में, बस हिंदुस्तान रहे

मुल्क का मुस्तक़बिल, सवारने का
मौका मिलता है सालों में
मत का मूल्य न घुलने देना
मयखानों के प्यालों में

आरक्षण से पहले
हो शिक्षा और रोज़गार का मुद्दा
धर्म-भ्रान्ति से बढ़कर
हो तकनीक और विज्ञानं  का मुद्दा

न विषदान करें, न विषपान करें
हर मज़हब का सम्मान करें
बस देश का भाग्य बदलना है
इस सोच से सब मतदान करें

ना राम रहे, ना रहमान रहे
ना गीता रहे, ना क़ुरान रहे
जमकर करना, मतदान मगर
तब दिल में, बस  हिंदुस्तान रहे

Saturday, February 16, 2019

पुलवामा के शहीद

पुलवामा के शहीदों के शव, जिस गली से भी गुजरे हैं
कृतज्ञ राष्ट्र के आंसूं वहां, मोती बन कर  बिखरे हैं

इस कायराना हरकत को, कैसे खुदा भी माफ़ करेगा
भगवान  करे न करे,  हिंदुस्तान ज़रूर इन्साफ करेगा

पर पहले पोंछ लें हम , बहते आँसूं उन माँओं के
कश्मीर रंग गया लहू से , जिनके ललनाओं के

दे थोड़ा ढाँढस उस नववधू को, वतन-समर्पित जिसका सुहाग
थोड़ा दुलार उस किलकारी को, जो कर रही अब विलाप

थोड़ी हिम्मत उस पिता को भी, जिसकी आँखे पथराई हैं
थोड़ा धैर्य उस बहन को भी , जिसका शहीद हुआ भाई है

फिर कायरों को भी देखेंगे, बच कर कहाँ वो जायेगा
भारत-वीरों का बलिदान, इस बार व्यर्थ ना जायेगा




Wednesday, January 30, 2019

माँ कहती है



निर्झर की चंचल निर्झरा सी 
देवलोक की  अप्सरा सी 
नदी लहर सी  निश्छल और 
शीत पवन सी चंचल तू 
तू मेरे घर की सोनचिरैय्या 
ऐसा माँ कहती है 

एक दिन होगी कोई रानी तू 
पर करना, ना अभिमान कभी 
बड़े-बुजुर्ग और  शुभचिंतक का 
करना ना, अपमान कभी 
तू मेरे  आँगन की गौरैय्या 
ऐसा माँ कहती है 

खो देना धन वैभव सब 
पर ना खोना, स्वाभिमान कभी 
भूल जाना सभी कटु वचन को
पर  भूलना, ना  एहसान कभी 
तू मेरे घर की लक्ष्मी मैय्या
ऐसा माँ कहती है 

ये दुनिया बड़ी हठीली है 
पर नहीं कभी, घबराना तुम 
गलत राह, जो चुन लिया कभी तो 
पहली आहट पर, मुड़ जाना तुम 
मंजिल की राहें भूल भुलैय्या 
ऐसा माँ कहती है 



गांव का मकान

था कभी गुलजार, जो  मेरे  गांव  का मकान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

आंगन में जहाँ थी, कभी गूंजती किलकारियां
रसोई में अम्मा-बुआ, काटती तरकारियाँ
खिड़की से ही दीखते थे, हरे खेत-खलिहान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

दरवाजे पर लगती थी, जिसके लोगों की चौपाल
जहाँ सब कोई रखता था,  सब का ख्याल
कबूतरों का घर था, जिसका खुला रौशनदान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

था गांव का जो घर, अब  चला गया शहर
जहा न अपनों की सुध, न परायों की खबर
हुयी सूनी-सूनी गलियां और सड़के वीरान 
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

था कभी गुलजार,  जो  मेरे  गांव  का मकान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

Monday, January 21, 2019

चुनाव आने वाला है!

फिर से बिगुल बजने वाला है, और  शोर मचने वाला है |
भारत-भाग्य-विधाता का चुनाव होने वाला है  ||

फिर से राज-दरबारी, गली-मोहल्लों में आने वाले हैं |
देखें  इस बार कौन सा, झुनझुना  थमाने  वाले हैं ||

मर्सिडीज़ में चलने वाले, फिर साइकिल पर लहरायेंगे |
छोड़ तिरंगा फिर से ये, जाति का झंडा फहराएंगे ||

देश बेचने वाले, फिर से  रखवाले बन जायेंगे
संसद के भगवान सभी, जनता दरबार लगाएंगे ||

फिर सफ़ेद कपड़ो पर, कीचड़ उछलने वाला है |
जल्द ही मेरे देश में , चुनाव आने वाला है || 

Sunday, January 20, 2019

जाने क्यूँ तुझसे प्रेम किया बंजारे


जाने क्यूँ  तुझसे.., प्रेम किया बंजारे
कैसा रोग, तुम्हे लागा अनुरागी
जो तुम बन बैठे बैरागी
राहें तक तक तेरी रसिया
नैना थक गए कारे कारे
जाने क्यूँ , तुझसे, प्रेम किया बंजारे ||

सावन भी सूखा लागे मोहे
हरियाली  ना मन को सोहे
कोयल की कूक भी शोर लगे है,
अब तो मुझको सांझ सबेरे
जाने क्यूँ  तुझसे, प्रेम किया बंजारे ||

सखी-सहेलियों से भी, रास नहीं अब
सभी पराये, कोई ख़ास नहीं अब
बिन जल मछली जैसा जीवन
नैनो से बहते, बस पानी खारे
जाने क्यूँ  तुझसे.., प्रेम किया बंजारे ||

प्रेम पाश से बांध के मुझको
कौन गली तुम चले गए
विरह-अग्नि से मुझे बचाने
अब तो आ जाओ, प्रियतम-प्यारे
जाने क्यूँ  तुझसे.., प्रेम किया बंजारे ||




जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now' कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे । "कल &quo...