Friday, November 15, 2019

कलम


मैं लिखने को तैयार, पर कलम लिखना ना चाहे 
मैं सब कहने को तैयार, पर जुबां कहना ना चाहे 

जो बिखर गए सब जज़्बात, तो उसे समेटे कौन 
शायद इस डर का एहसास, इसलिए वाणी मौन

दिल में दफ्नी यादों से कहीं, कोई धूल हटा ना दे
झूठी चिंगारी से कोई, सच की चादर  जला ना दे

मैं झुकने को तैयार, पर खुद्दारी झुकना ना जाने
मैं मिटने को तैयार, पर हस्ती मिटना ना जाने

मैं सब कहने को तैयार, पर जुबां कहना ना चाहे
मैं लिखने को तैयार, पर कलम लिखना ना चाहे 

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