Saturday, February 17, 2024

जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now'

कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे ।
"कल " में  जीने को बेचैन रहे ।।

सांसों के आने जाने को,  "जीवन जीने" का नाम दिया l
जब "जी लेने" का अवसर था, तब काम काम बस काम किया ।।

सूरज के चढ़ने ढलने को , जीवन का अर्थ समझ बैठे।
यादों की चादर बुनने को , व्यर्थ समय हम कह बैठे।।

अब वक्त नहीं जब हाथों में, और तन भी कुछ बेजान हुआ
बीत गया "कल" में जीवन, इस परम सत्य का ज्ञान हुआ 

भावी अवसर के चक्कर में, हम बेबस और बैचेन रहे ।
कभी कहा कभी हम मौन रहे, कल में जीने को बेचैन रहे

Thursday, October 12, 2023

क्या याद करते हो मुझे, ज्यादा नहीं तो थोड़ा सही

कुछ तो मेरी आशिकी का, होगा असर तुम पर कहीं 
क्या याद करते हो मुझे, ज्यादा नहीं तो थोड़ा सही ।।
दिल का तेरे पता ढूंढते,  थे लाखो आशिक बाजार में 
इश्क का जलता शमा  ले,  थे हम भी खड़े कतार में ।।
नजरों से तू कर इनायत, बस इतनी ही थी जुस्तुजू
ख़्वाब भर के देखे तुझको,  इतनी सी थी बस आरजू ।।
मेरे दिल की धड़कनों को,   सुना तो होगा तुमने कभी 
क्या याद करते हो मुझे, ज्यादा नहीं तो थोड़ा सही ।।
वैसे तो तेरे महफिलों में, मेरा भी आना जाना था  
तू चाहे मुझको गैर कह, पर मैने अपना माना था ll
हाल ए दिल न कह सके, तो चल पड़े अकेले राह पर
इश्क के तिलिस्म को, यादों के धागे से बांध कर  ll
खैर छोड़ो ये बताओ ! 
पहचानो पाओगे मुझे, जो हम  फिर मिले कहीं
क्या याद करते हो मुझे, ज्यादा नहीं तो थोड़ा सही ।।


Tuesday, September 19, 2023

राम रावण में इतना ही अंतर !

दो राजा की, एक कहानी
दोनो ज्ञाता, दोनो ज्ञानी
हम और अहम में ' अ ' का अंतर
राम - रावण में, इतना ही अंतर ll

शिव और शक्ति के दोनो पुजारी 
वीर धनुर्धर, प्रलयंकारी
नीति - अनिति मे जो फर्क परस्पर
राम - रावण में इतना ही अंतर  ।।

दोनों दाता, दोनो दानी
एक मायावी, एक माया स्वामी
सिय छवि भिन्न, दोनो उर अंदर
राम रावन में इतना ही अंतर ।।

दोनो तपस्वी, दोनो उपासक
दोनो नायक, कुशल प्रशासक
धर्म अधर्म के मध्य एक अक्षर
राम रावण में इतना हीं अंतर ll

दोनो नरेश सह बंधु समर्पण
भाई विभीषण, भ्राता लक्ष्मण
दोनो अनुज के, अर्पण का अंतर
राम रावन में इतना हीं अंतर ।।

दोनो भूपति, सर्व गुनखानी
अस्त्र, शस्त्र, विद्या रसखानी
तेज़ तमस के ताप का अंतर 
राम रावन में इतना ही अंतर ।।

Thursday, September 14, 2023

भगवान चले आयेंगे

असाध्य को हो साधना, या नव रीत का निर्माण हो 
दुर्गम हो कितना रास्ता , या  काटना पहाड़ हो 
या झूठ के अतिरेक में हो, सत्य को तलाशना 
हर ठौर नहीं... तीर और तलवार काम आयेंगे ll

ज़रा ज़रा सी बात पर, तू राम को पुकार मत 
छल कपट और छद्म का , कर भी  तू विचार मत 
जिंदगी से सीख कुछ, नए अस्त्र का निर्माण कर 
स्वयं पे रख विश्वास, ख़ुद भगवान चले आयेंगे ।।

कर्म की प्रधानता से, भाग्य को बदल दे तू 
असमर्थ भाव छोड़ अब, समर्थ बन के चल दे तू
धैर्य धारण कर ले तू और मन में रख एकाग्रता 
संधान कर तू शास्त्र का, नहीं शस्त्र काम आयेंगे ll

गर बन सके तो किसी कवि की,  कल्पना का काव्य बन
वैमनस्यता  छोड़ , तू देवता सा दिव्य बन
युद्ध के माहौल में, तू शांति का पर्याय बन 
सत्य संग संज्ञान रख,  परमार्थ मिल जायेंगे।।








Tuesday, September 5, 2023

स्त्री हर काल में

जानकी से प्रेम का, प्रमाण राम मांगते 
कही सुनी को मान सच, अग्नि में हैं दाहते 
सीता के सम्मान की, ऐसी कैसी  रक्षा ये
कि खुद भगवान वैदेही को ही त्याग दे

राम के वचन को कृष्ण,  द्वापर में हैं तोड़ते 
नारी नहीं, नारियों संग रिश्ते को हैं जोड़ते
रुक्मिणी के होकर, कान्हा राधा को विचारते
और संग सत्यभामा, वन- उपवन निहारते 

पांडवों के तीर, कुंती- वचन  को ना काटते 
ब्याहता को पांच भ्रताओं के मध्य  बांटते 
ध्रुपद की कन्या , जैसे जीता हुआ राज्य कोई..
चौसर की चादर पे, जा द्रोपदी को  हारते

Tuesday, July 18, 2023

काला टीका लगा लो राधा

मथुरा गोकुल छोड़ कन्हैया, वृंदावन में आए जी 
मन में छवि रख राधा की, ब्रज में रास रसाए जी
काले नैनो वाली राधा , काले कृष्ण बिहारी जी 
काला टीका लगा लो राधा, नजर लगे न मुरारी की ।।

तारण हार कहाने वाले,  प्रेम नदी  ना..तर पाए 
गीता पाठ पढ़ाने वाले, ख़ुद मोह पाश से बच ना पाए 
चक्रधारी का चक्र चले ना, देख राधा की नैन कटारी जी
काला टीका लगा लो राधा, नज़र लगे ना मुरारी की ।।

महायुद्ध जितवाने वाले, राधा रानी से हारे जी
मनमोहक मुस्कान देख, सब सुधबुद अपना वारे जी
चितचोर का चित्त चुराए, चंचल चितवन राधा  की 
काला टीका लगा लो राधा, नजर लगे ना मुरारी की ll


मुसाफ़िर

कुछ बाते कुछ यादें छोड़ कर, 
कुछ रिश्ते, कुछ नाते तोड़ कर
आसमान छूने की खातिर, 
घर से निकल पड़ा मुसाफिर ll

आंखो को आंसू से धोकर, 
सपनो की चादर ओढ़ कर
किस्मत अपनी आजमाने, 
अंजान डगर चल पड़ा मुसाफिर 

राहों के छद्म चौराहों पर,
ढूंढे उसने कई सच्चे अवसर 
विश्वास की ढाल पहन कर,
 रणभूमि में उतर पड़ा मुसाफिर 

कभी जीत कर, कभी हार कर
मंजिल की डगर पर पार कर
हौसले के बिस्तर पर,
 सर रख कर, सो पड़ा मुसाफ़िर  ll

परदेस में ऊंचे मकाम पर
याद आया छूटा हुआ घर
देर हो गई घर लौटने में.
 फिर ' दिल से बेघर ' हुआ मुसाफिर ll











जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now' कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे । "कल &quo...