Wednesday, August 21, 2019

चांद से सुलह

सोचा चांद से आज, मैं सुलह कर लूं
चाय पे बुला कर कुछ, जिरह कर लूं  !

आखिर कब तक करूं, नजरंदाज उसे
दिल कहता है फिर दे दूं ,  आवाज़ उसे !

क्या हुआ जो उसके, नखरों से परेशान हूं 
आखिर फितरत से मैं भी,  एक इंसान हूं  !

साथ उसके मैं, आस्मा का सफर कर लूं
सोचा चांद से आज, मैं सुलह कर लूं !

मुझे लगा कि चांद से सुलह हो गई
पर जाते जाते फिर से कलह हो गई !

कल था पूरा चांद, आज आधा हुआ 
उसका  नखरा भी पहले से ज़्यादा हुआ !

सितारों के संग भी, वो गैरों सा रहा
चांदनी रात में भी , सबसे  छुपता रहा !

उसे छोड़ दूं, या  एक और पहल कर लूं
क्या चांद को बुला कर, मै  फ़िर से  सुलह कर लूं !

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