अर्थव्यवस्था मुल्क की, इस क़दर जार जार !
जहाँ कार भी बेकार और कपड़ा तार तार !!
जी एस टी के मार से, हुआ पारले बेस्वाद !
व्यापार में सिर्फ, रिलायंस की शंखनाद!!
बैंक भी बन बैठा, है आज कर्ज़दार !
शिक्षा सम्पन्न भी, हो रहे बेरोजगार !!
हवा हवाई हो रहा, हवा में सफर !
देश में भी फ़ैल रहा, लिंचिंग का जहर !!
मैदां-पहाड़ हुए, प्रकृति से पस्त !
खेत खलिहान भी, सूखे से त्रस्त !!
पड़ोसी भी अपना, मचा रहा हाहाकार !
कमज़ोर विपक्ष भी, भर रहा हुंकार !!
कश्मीर नज़रबंद, वहां अब भी तकरार !
घाटी में घूम रही, ब्रितानिया सरकार !!
प्रदूषण और जनसंख्या का, भी नहीं समाधान !
सोच रही सरकार, कैसे संभले हिन्दुस्तान !!
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