ख़ुशियाँ मिला करती थी, जब ज़िन्दगी थी अभावों में
किसी के बाग़ बगीचों में, किसी के सहज स्वभावों में
उस वक़्त लोगों के घर, बिना दावत के जाते थे
किसी भी ठौर पे, अपनेपन का अहसास पाते थे
दिल खुश हो जाता था, प्यार भरे निवाले को चखकर
चाय मीठी हो जाती थी, पड़ोस की चीनी से मिलकर
वो दौर ही था कुछ और , जहाँ हर ठौर अपना था
लोगों के घरों को छोड़ो, दिलों पर भी हक़ अपना था
किसी के बाग़ बगीचों में, किसी के सहज स्वभावों में
उस वक़्त लोगों के घर, बिना दावत के जाते थे
किसी भी ठौर पे, अपनेपन का अहसास पाते थे
दिल खुश हो जाता था, प्यार भरे निवाले को चखकर
चाय मीठी हो जाती थी, पड़ोस की चीनी से मिलकर
वो दौर ही था कुछ और , जहाँ हर ठौर अपना था
लोगों के घरों को छोड़ो, दिलों पर भी हक़ अपना था
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