Thursday, March 28, 2019

लखनऊ

मन को मेरे कुछ ऐसा भाता है लखनऊ
रह रह कर बहुत याद आता है लखनऊ

अमीनाबाद की गलिया, या  चौक के चौबारे
 गड़बड़झाला का बाजार, जैसे सब  मुझे पुकारे

निहारी, टुंडे कबाबी, या दस्तरख़्वान  की बिरयानी,
बस सोचते ही मुँह में बरबस आ जाता  पानी

 प्रकाश की कुल्फी, या शुक्ला  जी की  चाट
चौक की मक्ख़न- मलाई, वो खाने पीने के ठाट

रंंगीले गंज के गलियारे, कॉफ़ी हाउस की कॉफ़ी
गोमती  मरीन ड्राइव और आंबेडकर पार्क के हाथी

नक्खास  की नक्काशी या चौक की चिकनकारी
कपड़ो के मान बढाती, हुनरवालों की कारीगरी

ऐतहासिक भूलभुलैय्या, या छोटा इमामबाड़ा
हर नुक्कड़ पर दिख जाता है, जहाँ नवाबी नज़ारा

तहज़ीब के इत्र से महकता है  लखनऊ
मैं कहीं भी रहूं, दिल में धड़कता है लखनऊ







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