Wednesday, January 30, 2019

माँ कहती है



निर्झर की चंचल निर्झरा सी 
देवलोक की  अप्सरा सी 
नदी लहर सी  निश्छल और 
शीत पवन सी चंचल तू 
तू मेरे घर की सोनचिरैय्या 
ऐसा माँ कहती है 

एक दिन होगी कोई रानी तू 
पर करना, ना अभिमान कभी 
बड़े-बुजुर्ग और  शुभचिंतक का 
करना ना, अपमान कभी 
तू मेरे  आँगन की गौरैय्या 
ऐसा माँ कहती है 

खो देना धन वैभव सब 
पर ना खोना, स्वाभिमान कभी 
भूल जाना सभी कटु वचन को
पर  भूलना, ना  एहसान कभी 
तू मेरे घर की लक्ष्मी मैय्या
ऐसा माँ कहती है 

ये दुनिया बड़ी हठीली है 
पर नहीं कभी, घबराना तुम 
गलत राह, जो चुन लिया कभी तो 
पहली आहट पर, मुड़ जाना तुम 
मंजिल की राहें भूल भुलैय्या 
ऐसा माँ कहती है 



गांव का मकान

था कभी गुलजार, जो  मेरे  गांव  का मकान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

आंगन में जहाँ थी, कभी गूंजती किलकारियां
रसोई में अम्मा-बुआ, काटती तरकारियाँ
खिड़की से ही दीखते थे, हरे खेत-खलिहान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

दरवाजे पर लगती थी, जिसके लोगों की चौपाल
जहाँ सब कोई रखता था,  सब का ख्याल
कबूतरों का घर था, जिसका खुला रौशनदान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

था गांव का जो घर, अब  चला गया शहर
जहा न अपनों की सुध, न परायों की खबर
हुयी सूनी-सूनी गलियां और सड़के वीरान 
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

था कभी गुलजार,  जो  मेरे  गांव  का मकान
अब बहुत ही सुनसान, वो मेरे गांव का मकान

Monday, January 21, 2019

चुनाव आने वाला है!

फिर से बिगुल बजने वाला है, और  शोर मचने वाला है |
भारत-भाग्य-विधाता का चुनाव होने वाला है  ||

फिर से राज-दरबारी, गली-मोहल्लों में आने वाले हैं |
देखें  इस बार कौन सा, झुनझुना  थमाने  वाले हैं ||

मर्सिडीज़ में चलने वाले, फिर साइकिल पर लहरायेंगे |
छोड़ तिरंगा फिर से ये, जाति का झंडा फहराएंगे ||

देश बेचने वाले, फिर से  रखवाले बन जायेंगे
संसद के भगवान सभी, जनता दरबार लगाएंगे ||

फिर सफ़ेद कपड़ो पर, कीचड़ उछलने वाला है |
जल्द ही मेरे देश में , चुनाव आने वाला है || 

Sunday, January 20, 2019

जाने क्यूँ तुझसे प्रेम किया बंजारे


जाने क्यूँ  तुझसे.., प्रेम किया बंजारे
कैसा रोग, तुम्हे लागा अनुरागी
जो तुम बन बैठे बैरागी
राहें तक तक तेरी रसिया
नैना थक गए कारे कारे
जाने क्यूँ , तुझसे, प्रेम किया बंजारे ||

सावन भी सूखा लागे मोहे
हरियाली  ना मन को सोहे
कोयल की कूक भी शोर लगे है,
अब तो मुझको सांझ सबेरे
जाने क्यूँ  तुझसे, प्रेम किया बंजारे ||

सखी-सहेलियों से भी, रास नहीं अब
सभी पराये, कोई ख़ास नहीं अब
बिन जल मछली जैसा जीवन
नैनो से बहते, बस पानी खारे
जाने क्यूँ  तुझसे.., प्रेम किया बंजारे ||

प्रेम पाश से बांध के मुझको
कौन गली तुम चले गए
विरह-अग्नि से मुझे बचाने
अब तो आ जाओ, प्रियतम-प्यारे
जाने क्यूँ  तुझसे.., प्रेम किया बंजारे ||




जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now' कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे । "कल &quo...