निर्झर की चंचल निर्झरा सी
देवलोक की अप्सरा सी
नदी लहर सी निश्छल और
शीत पवन सी चंचल तू
तू मेरे घर की सोनचिरैय्या
ऐसा माँ कहती है
एक दिन होगी कोई रानी तू
पर करना, ना अभिमान कभी
बड़े-बुजुर्ग और शुभचिंतक का
करना ना, अपमान कभी
तू मेरे आँगन की गौरैय्या
ऐसा माँ कहती है
खो देना धन वैभव सब
पर ना खोना, स्वाभिमान कभी
भूल जाना सभी कटु वचन को
पर भूलना, ना एहसान कभी
तू मेरे घर की लक्ष्मी मैय्या
ऐसा माँ कहती है
ये दुनिया बड़ी हठीली है
पर नहीं कभी, घबराना तुम
गलत राह, जो चुन लिया कभी तो
पहली आहट पर, मुड़ जाना तुम
मंजिल की राहें भूल भुलैय्या
ऐसा माँ कहती है