Friday, March 11, 2016

जीवन-सार

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर । 
ना काहू से मोह मोहे , पर सबकी मांगू खैर ॥ 
समय परिवर्तित होत है, बदलत सबके ढंग । 
सूर्य-ताप में तपकर जैसे, वस्त्र बदलता रंग ॥ 
सारे धातु खान से , निकलत एक समान।
जो दमके अग्नि-आँच में , वही होता स्वर्ण-समान।
प्रेम-रतन अनमोल है , मोल से हो विरोध ।
सम- बंधन सम्बंध में , अपेक्षा गतिरोध ।।
संदर्भ के दर्पण में ही , सही-ग़लत सब होत ।
कोई काज से होये प्रस्सन्न तो कोई दुःखी  होत ।।
भाग्य-कर्म का मेल है जीवन, जिसमे सुख-संताप ।
इच्छा-त्याग के तुला में तुलता, पुण्य-पाप का माप ॥
आकांक्षाओं के आडम्बर में पल कर, बढ़ता जीवन-रूआब ।
जो पूर्ण हुयी वो ज़िन्दगी , अपूर्ण रहा तो ख्वाब ॥

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