Friday, August 14, 2015

आज़ादी



उन्नहत्तर वर्ष की हुयी आज़ादी ,
फिर भी कितने आज़ाद हैं हम ।
बून्द-बून्द में मिली हैं खुशियां ,
सागर भर के मिला है ग़म ॥
   
धर्म-जाति  के नाम यहाँ पर,
नित्  नए दंगे होते हैं  ।
भ्रष्टाचार की स्याही में डूब,
कई हाथ गंदे होते हैं ॥

आरक्षण की बेड़ी डाल कर,
करते प्रतिभा का अपमान यहाँ ।
झीनी - झीनी कर माँ की चुनरी ,
करते नारी सम्मान यहाँ ॥

फिर एक नयी स्वतंत्रता पाने की
उम्मीद लगाये  बैठे हम ।
उन्नहत्तर वर्ष की हुयी आज़ादी ,
फिर भी कितने आज़ाद हैं हम ॥

No comments:

Post a Comment

जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now' कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे । "कल &quo...