उन्नहत्तर वर्ष की हुयी आज़ादी ,
फिर भी कितने आज़ाद हैं हम ।
बून्द-बून्द में मिली हैं खुशियां ,
सागर भर के मिला है ग़म ॥
धर्म-जाति के नाम यहाँ पर,
नित् नए दंगे होते हैं ।
भ्रष्टाचार की स्याही में डूब,
कई हाथ गंदे होते हैं ॥
आरक्षण की बेड़ी डाल कर,
करते प्रतिभा का अपमान यहाँ ।
झीनी - झीनी कर माँ की चुनरी ,
करते नारी सम्मान यहाँ ॥
फिर एक नयी स्वतंत्रता पाने की
उम्मीद लगाये बैठे हम ।
उन्नहत्तर वर्ष की हुयी आज़ादी ,
फिर भी कितने आज़ाद हैं हम ॥
No comments:
Post a Comment