Sunday, February 23, 2020

ज़िन्दगी कोई लिबास

ज़िन्दगी, बहुत ख़ास है तू !
कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !!

तेरा अंदाज़-ए-बयां भी कुछ निराला सा !
कभी खुशबूदार-गुलदस्ता, तो कभी ग़म का प्याला सा !!

मनचली है तू और सिक्कों सी पलट जाती है !
कभी होठों से बरसती, तो कभी आँखों से छलक जाती है !!

तेरे रूप हज़ारों और नित नए रंग चुनती तू !
उम्मीद की सीढ़ी पे चढ़ नए सपने बुनती तू !!

पर ज़ज़्बातों के समंदर से तू हर बार उलझ जाती है !
फिर दिल की पतवार थाम, चुपके से सुलझ जाती है !!

तू खूबसूरत भी है और मज़ेदार भी !
बड़ी विचित्र सी है तू और गुलज़ार भी !!

मुश्किल सी दिखती है, मगर आसान है तू !
रहती है रौब में, मगर मौत का मेहमान है तू !!

ज़िन्दगी, बहुत ख़ास है तू !
कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !!

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