Sunday, November 12, 2017

ख़त

एक ख़त भेजा है तुमको,
जो फुर्सत हो तो पढ़ लेना | 
गर सूरत याद नहीं तुमको ,
तो दिल  में मूरत कोई गढ़ लेना || 

सहेज कर रखा है मैंने,
बीते कल की यादों को | 
बयां कर रखा है खत में, 
बीते पल के बातों को || 

फैसला दूर होने का ,
थी मज़बूरी या मेरी किस्मत | 
वजह मालूम नहीं हमको ,
की क्यों लेनी पड़ी रुख़्सत || 

ख़त की हर इक  पाती में ,
मिली मेरे अश्रु की स्याही है | 
लिखी हर दास्ताँ इसमें,
मेरे ज़ज्बातों से नहायी है || 

शुक्रिया कहना था तुमको,
हर उस बात की खातिर | 
हर उस लम्हे की खातिर ,
जिया जिसको समझ आखिर || 

कभी मेरी याद आये तो,
अपने दिल से  खबर लेना | 
एक खत भेजा है तुमको,
जो फुर्सत हो तो पढ़ लेना || 

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