जाने माँ की थपकी , किसे नेह निमंत्रण देती है
मेरे नेत्र बंद हो जाते हैं , और नीद अलंकृत होती है
नन्हीं आँखों के ब्रह्माण्ड में , कितने स्वपन समाहित होते हैं
जितने नभ में तारे और , सागर में मोती बिखरे होते हैं
भय लगता है मुझे कभी , फिर नया सबेरा होने से
आँखों के खुल जाने से और दिवा - स्वपन में खोने से
कोमल सुनहरे सपनों पर काले बादल के छाने से
मझधार में उलझी नैय्या के सागर में गोते खाने से
जब इस भय से मेरी आंखे , किंचित ही खुल जाती हैं
सपनो की सुन्दर नगरी , युही छिन्न भिन्न हो जाती है
तब माँ की ममतामयी थपकी , एक नया हौसला देती है
फिर से नेत्र बंद हो जाते हैं , फिर से नीद अलंकृत होती है !
मेरे नेत्र बंद हो जाते हैं , और नीद अलंकृत होती है
नन्हीं आँखों के ब्रह्माण्ड में , कितने स्वपन समाहित होते हैं
जितने नभ में तारे और , सागर में मोती बिखरे होते हैं
भय लगता है मुझे कभी , फिर नया सबेरा होने से
आँखों के खुल जाने से और दिवा - स्वपन में खोने से
कोमल सुनहरे सपनों पर काले बादल के छाने से
मझधार में उलझी नैय्या के सागर में गोते खाने से
जब इस भय से मेरी आंखे , किंचित ही खुल जाती हैं
सपनो की सुन्दर नगरी , युही छिन्न भिन्न हो जाती है
तब माँ की ममतामयी थपकी , एक नया हौसला देती है
फिर से नेत्र बंद हो जाते हैं , फिर से नीद अलंकृत होती है !