Thursday, September 9, 2021

samvad

ठोकर खा पथरीली राहों में,
हम बिखरे भी है, निखरे भी है 
हर ज़ख्म नहीं है ऊपरी,
कुछ घाव दिलों के गहरे भी हैं ।।
है द्वेष यहां, है वेदना,
है सत्य संग संवेदना ।
हर संबंध मतलबी नहीं इधर,
कुछ लोग, दिलों में ठहरे भी है ।।
मन हारे का अंधियारा मन में,
तो उज्वल आशा की किरणे भी है ।
अभिमान गगन सा व्याप्त यहां,
 स्वाभिमानी सागर सी लहरे भी है ।।
हम हुकुम का इक्का, ना सही,
पर, किस्मत के खेल की मुहरें तो है ।
इस माया के बाज़ार में,
 कितनी बार बिके भी हैं।
संबंधों के मान के खातिर,
 कई कई बार झुके भी हैं ।।
दिल चाहे तोड़ना हर बंदिश ,
पर अपनों के कुछ पहरे भी हैं।।
ठोकर खा पथरीली राहों में,
हम बिखरे भी है, निखरे भी है 
हर ज़ख्म नहीं है ऊपरी,
कुछ घाव दिलों के गहरे भी हैं ।।

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