सुनो प्रताप, तुम्हे आना होगा
भाला पुनः चलाना होगा ।।
जब सब के सब तेरे वंशज l
फिर क्यूं ये दुविधा असमंजस ।।
छप्पन भोग, सब सुख नसीब
जहाँ दो दाने को तरसे गरीब
ये भेद अमीरी गरीबी का
अब तुमको ही मिटाना होगा ।
सुनो प्रताप, तुम्हे आना होगा
भाला पुनः चलाना होगा ।।
हर दिशा अटी दुशासन से ।
सब त्रस्त धृतराष्ट्र प्रशासन से ।।
यहां क्या मांएं क्या बेटियां ।
सब भरी सभा की द्रौपदीयां ।।
आर्यावर्त के मां बहनों की
अब लाज तुम्हे बचाना होगा ।
सुनो प्रताप तुम्हे आना होगा
भाला पुनः चलाना होगा ।।
हे जयवंता के लाल सुनो ।
एक कुरुक्षेत्र, तुम भी चुनो ।।
जहां पार्थ कर्ण का भेद ना हो ।
विश्वास रहे, संदेह न हो ।।
जहां पाप पुण्य सब अंत हो।
बस एकम भाव अनंत हो ।।
अमन प्रेम रौशन दिया
अब तुमको ही जलाना होगा ।
सुनो प्रताप तुम्हे आना होगा
भाला पुनः चलाना होगा ।।