ज़िन्दगी, बहुत ख़ास है तू !
कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !!
कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !!
तेरा अंदाज़-ए-बयां भी कुछ निराला सा !
कभी खुशबूदार-गुलदस्ता, तो कभी ग़म का प्याला सा !!
मनचली है तू और सिक्कों सी पलट जाती है !
कभी खुशबूदार-गुलदस्ता, तो कभी ग़म का प्याला सा !!
मनचली है तू और सिक्कों सी पलट जाती है !
कभी होठों से बरसती, तो कभी आँखों से छलक जाती है !!
तेरे रूप हज़ारों और नित नए रंग चुनती तू !
उम्मीद की सीढ़ी पे चढ़ नए सपने बुनती तू !!
पर ज़ज़्बातों के समंदर से तू हर बार उलझ जाती है !
उम्मीद की सीढ़ी पे चढ़ नए सपने बुनती तू !!
पर ज़ज़्बातों के समंदर से तू हर बार उलझ जाती है !
फिर दिल की पतवार थाम, चुपके से सुलझ जाती है !!
तू खूबसूरत भी है और मज़ेदार भी !
बड़ी विचित्र सी है तू और गुलज़ार भी !!
मुश्किल सी दिखती है, मगर आसान है तू !
रहती है रौब में, मगर मौत का मेहमान है तू !!
बड़ी विचित्र सी है तू और गुलज़ार भी !!
मुश्किल सी दिखती है, मगर आसान है तू !
रहती है रौब में, मगर मौत का मेहमान है तू !!
ज़िन्दगी, बहुत ख़ास है तू !
कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !!
कभी भारी, तो कभी हल्का, कोई लिबास है तू !!