Friday, August 14, 2015

आज़ादी



उन्नहत्तर वर्ष की हुयी आज़ादी ,
फिर भी कितने आज़ाद हैं हम ।
बून्द-बून्द में मिली हैं खुशियां ,
सागर भर के मिला है ग़म ॥
   
धर्म-जाति  के नाम यहाँ पर,
नित्  नए दंगे होते हैं  ।
भ्रष्टाचार की स्याही में डूब,
कई हाथ गंदे होते हैं ॥

आरक्षण की बेड़ी डाल कर,
करते प्रतिभा का अपमान यहाँ ।
झीनी - झीनी कर माँ की चुनरी ,
करते नारी सम्मान यहाँ ॥

फिर एक नयी स्वतंत्रता पाने की
उम्मीद लगाये  बैठे हम ।
उन्नहत्तर वर्ष की हुयी आज़ादी ,
फिर भी कितने आज़ाद हैं हम ॥

Monday, July 27, 2015

डॉ कलाम

डॉ कलाम तुमको सलाम !


आज पवित्र 'अग्नि की उड़ान' हो गयी 

प्रखर ज्योतिर्पुंज की लौ बुझ गयी 
नम नयनो से नमन है उस उम्मीद-किरण को
उस ज्ञानी श्रेष्ठ को , स्वाभिमानी संत को 
आंधी और तूफान में भी जगमगाते रहे ऐसे 
वो एक घृत का दिया नहीं , मशाल हो कोई जैसे 
देशवाशियों को वो शांति -प्रेम- ज्ञान का नारा दे गया 
जमीं से जुड़ा इन्सां, आज आसमा का सितारा बन गया

जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now' कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे । "कल &quo...