कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे ।
"कल " में जीने को बेचैन रहे ।।
सांसों के आने जाने को, "जीवन जीने" का नाम दिया l
जब "जी लेने" का अवसर था, तब काम काम बस काम किया ।।
सूरज के चढ़ने ढलने को , जीवन का अर्थ समझ बैठे।
यादों की चादर बुनने को , व्यर्थ समय हम कह बैठे।।
अब वक्त नहीं जब हाथों में, और तन भी कुछ बेजान हुआ
बीत गया "कल" में जीवन, इस परम सत्य का ज्ञान हुआ
भावी अवसर के चक्कर में, हम बेबस और बैचेन रहे ।
कभी कहा कभी हम मौन रहे, कल में जीने को बेचैन रहे