आवा बुच्ची तोके अपने, देस से मिलवाई हो
भाइलू बिदेसी, तोहर परिचय कराई हो ।।
चैत नवरातन से, साल शुरुआत हो
खेत खलिहान मे, अन्न धन कटात हो
मास बैशाख में, बैसाखी का मेला
जेठ असाढ़ सब गर्मी से मरेला
सतुवा प्याज़ बिना, खाना बेसुवाद बा
ऊँखी के रस क स्वाद लाजवाब बा
सावन सोमार में बच्ची, तुहुं देदा अर्जी
लइका शरीफ़ मिले, ना कउनो फ़र्ज़ी
भादो महीना भी , बुन्नी बरसात के
जन्माष्टमी पर्व भी, अष्टमी के रात के
कुंवार कार्तिक के महीना सुहावन
सगरो त्योहार पड़े, एतना ई पावन ।।
कातिक अमावस जन मनावे दिवाली
बाटे मिठाई, साजे दिया का थाली
हवा ठंडाई जाला, पूस -अगहन में
हाथ सिकुड़ाई जाला, एही ठिठुरन में ।।
बोरसी के आग सेंक, देह गरमाला
लिट्टी दाल चोखा, रोजे सब खाला ।।
खिचड़ी क धूम, माघ के मास में
पेट में लायी -चूरा, पतंग आकाश में
फगुआ के रंग से फागुन रंगेला
गुझिया ठंडाई पी दुनिया घुमेला
खेत खलिहान भरल, सरसो गेहूं धान बा
सब जग अनोखा हमार, देसवा महान बा ।।
आवा बुच्ची तोके अपने, देस से मिलवाई हो
भाइलू बिदेसी, तोहर परिचय कराई हो ।।