Thursday, May 30, 2019

कहाँ

कहाँ सभी लिखने वाले, भरते, कोरे-कागज़ का खालीपन 
कहाँ सभी की जिरह लगाती, मन की पीड़ा, पर मलहम 

कहाँ उजाले से दिनकर के, मन का अँधियारा छटता है 
कहाँ बिना प्रेम भाव के, बैर...., ह्रदय से मिटता है 

कहाँ समंदर का खारा पानी, प्यासे की प्यास बुझाता है 
कहाँ हिमालय का हर पौधा,  मूर्छित में चेतना लाता है 

कहाँ हर अंगूर से बनती, मधु मदिरा, मादक हाला 
कहा खरे सोने से बनती, कंठ हार और गल-माला 

कहाँ किताबें सुलझा पाती, जिज्ञासु के मन की उलझन 
कहाँ हर शिखर पुरुष ला पाता, परम्परा में परिवर्तन  

नयी इबारत लिखने वाले दुनिया में, कभी कभी ही आते हैं 
जैसे काँटों के जंगल में रह कर सिर्फ गुलाब मुस्कुराते हैं 

जिंदगी आज कल

When you live 'Future Blind' & Miss the Moment of 'Now' कभी "कहा" कभी, हम "मौन" रहे । "कल &quo...