चाँद-सितारे, धरती-अम्बर,
ये सब जब उसकी रचना
फिर मंदिर-मंदिर क्यों करना
फिर मस्जिद-मस्जिद क्यों करना
गाँव-गाँव या शहर-शहर
जब हर दिल में, है खुदा का घर
फिर बना के मंदिर-मस्जिद उसको
दिल से बेघर क्यों करना
यदि मंदिर नहीं बना अवध में
तो क्या राम की पूजा नहीं होगी
जो अजान से ना गूंजे बाबरी
तो क्या खुदा इनायत नहीं होगी
जो नव-निर्माण का शौक है तुमको
तो फिर राष्ट्र निर्माण करो
गर कुछ खंडित ही करना तुमको
तो फिर धर्म-भेद पर वार करो
संगठित देश, संगठित राज्य
सुन्दर समाज की करो कल्पना
ये मंदिर मंदिर क्यों करना
ये मस्जिद मस्जिद क्यों करना